ठीक उसी प्रकार हम मनुष्यों के भाग्य में कितना है यह कर्म करने के पश्चात ही सुनिश्चित होता है!! अतः ना ही कर्म बड़ा है ओर ना ही भाग्य….. भाग्य एक ताला है और कर्म उसकी चाबी !!!
ज्योतिष कर्मशास्त्र का ही एक हिस्सा है भाग्य को कोई काट नहीं सकता, भाग्य ने जो लिख दिया समझो लिख दिया। इस बात से डरने की कोई वजह नहीं, क्योंकि भाग्य भी हम ही बनाते हैं।
दोनों को अलग-अलग देखने के कारण ही यह झगड़ा चल रहा है। वास्तविकता यह है कि ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस बात को website समझाने के लिए वैसे तो सैकड़ों उदाहरण दिए जा सकते हैं। एक उदाहरण है- एक निर्जन स्थान पर लगे आम के पेड़ से आमों को तोडनÞे के लिए कुछ बच्चे पत्थर फेंक रहे थे। पेड़ के उस पार झाडियÞों के पीछे एक व्यक्ति जा रहा था।
आचार्य जी ने मुझे रविवार वाले दिन, एकांत में आने को कहा और ध्यान के लिए चले गए। मैं उनसे समय तक पूछ नहीं पाया, पर उनके एक अनुयायी ने मुझे सुबह जल्दी आने के लिए सुझाव दिया।
भगवान् के भरोसे मत बैठो….का पता…भगवान् तुम्हरे भरोसे बैठा हो?
आचार्य जी ने सभी शिष्यों को बुलाया और समझाया:
अरे ,ये तो भाग्य है
अध्यात्म में भी कर्म के सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति जितने भी कष्ट भोगता है या उसके भाग्य में जो दुर्गति लिखी होती है, वो उसके संचित कर्मों (पिछले जन्मों के बुरे कर्मों ) का परिणाम होती है। इसलिए, अगर आपके खाते में बुरे कर्म हैं, तो ये आवश्यक है कि आप अच्छे कर्मों को कर अपने भाग्य के परिणाम को बदलने की कोशिश करें या उन बुरे कर्मों को नष्ट करें।
मैंने ऐसे कई बच्चे देखे जिन्होंने तीन , चार साल मेडिकल या इंजिनीयरिंग की रोते हुए पढाई करने के बाद लाइन चेंज की
आचार्य जी-अरे वो आप कैसे कर सकते हैं, वह तो अपने भाग्य का लिखा भुगत रहे हैं, उनकी आप कैसे मदद कर सकते हैं?
आप पहले तय कर लीजिये कि आप पक्ष में हैं या विपक्ष में और उसी के मुताबिक अपना कमेंट डालिए.
आज हमारी डिबेट का टॉपिक इन्ही विरोधाभाषी विचारों को लेकर है. हमारा टॉपिक है-
अगर कर्म ही बड़ा होता तो लाखों-करोड़ों लोग हाथों में अंगूठियाँ नहीं पहनते…जिसमे नीलम पहनने वाले अमिताभ बच्हन जैसी हस्ती भी शामिल हैं.